Friday, June 29, 2012

Remained unnoticed

परिचय नहीं हुआ

चलने को तो राहें अनगिनत मिलीं
मंजिल से अबतक परिचय नहीं हुआ.

अपने दोषों को अपने माथे मढ़
जब चला साथ मेरे आरोप चले.
सन्नाटे में भेदते कुहासे को
जो साथी मिले हवा की तरह मिले.

बन्दी होने को दीवारें तो थीं
छत जैसा कोई आश्रय नहीं हुआ.

मैंने खुद ही काँटों की राह चुनी
जिससे अभ्यास चुभन का हो जाये
अपना कुछ हठी स्वभाव रहा ऐसा
सुविधाओं को स्वीकार न कर पाये

मेरा स्वर स्वाभिमान की कीमत पर
बेशक टूटा पर अनुनय नहीं हुआ.

लोगों की पैरों फटी बिबाई में
मुझको मेरा भगवान नजर आया
मैंने पहचान बढ़ाई पीड़ा से
मुझसे परिचय इन्सान न कर पाया.

सबने मुझको शंकित मन से देखा
पर मुझे किसी पर संशय नहीं हुआ.

प्रत्येक व्यथित उर का दुःख गढ़ने को
सम्बन्ध बनाये रखा भावना से
इतिहासों ने अध्याय बन्द करके
शत्रुता निभायी सतत साधना से.

संघर्ष कर रहा हूँ वाधाओं से
दुर्भाग्य यही जो निर्णय नहीं हुआ.

No comments: